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लियो टॉलस्टॉय की रचनाएँ




4
परातःकाल हो गया। माधो जागा, बच्चे अभी सोये पड़े थे। मालती पड़ोसिन से अन्न मांगने गयी थी। अजनबी मनुष्य भूमि पर बैठा आकाश की ओर देख रहा था, परन्तु उसका मुख अब परसन्न था।
माधो-मित्र, पेट रोटी मांगता है, शरीर वस्त्र; अतएव काम करना आवश्यक है। तुम कोई काम जानते हो?
मनुष्य-मैं कोई काम नहीं जानता।
माधो-अभ्यास बड़ी वस्तु है, मनुष्य यदि चाहे तो सबकुछ सीख सकता है।
मनुष्य-मैं सीखने को तैयार हूं, आप सिखा दीजिए।
माधो-तुम्हारा नाम क्या है?
मनुष्य-मैकू।
माधो-भाई मैकू, यदि तुम अपना हाल सुनाना नहीं चाहते तो न सुनाओ, परन्तु कुछ काम अवश्य करो। जूते बनाना सीख लो और यहीं रहो।
मैकू-बहुत अच्छा।
अब माधो ने मैकू को सूत बांटना, उस पर मोम च़ाना, जूते सीना आदि काम सिखाना शुरू कर दिया। मैकू तीन दिन में ही ऐसे जूते बनाने लगा, मानो सदा से चमार का ही काम करता रहा हो। वह घर से बाहर नहीं निकलता था, बोलता भी बहुत कम था। अब तक वह केवल एक बार उस समय हंसा था जब मालती ने उसे भोजन कराया था, फिर वह कभी नहीं हंसा।

5
धीरेधीरे एक वर्ष बीत गया। चारों ओर धूम मच गई कि माधो का नौकर मैकू जैसे पक्के मजबूत जूते बनाता है, दूसरा कोई नहीं बना सकता। माधो के पास बहुत काम आने लगा और उसकी आमदनी बहुत ब़ गई।
एक दिन माधो और मैकू बैठे काम कर रहे थे कि एक गाड़ी आयी, उसमें से एक धनी पुरुष उतरकर झोंपड़े के पास आया। मालती ने झट से किवाड़ खोल दिए; वह भीतर आ गया।
माधो ने उठकर परणाम किया। उसने ऐसा सुन्दर पुरुष पहले कभी नहीं देखा था। वह स्वयं दुबला था, मैकू और भी दुबला और मालती तो हिड्डयों का पिंजरा थी। यह पुरुष तो किसी दूसरे ही लोक का वासी जान पड़ता था-लाल मुंह, चौड़ी छाती, तनी हुई गर्दन; मानो सारा शरीर लोहे में ला हुआ है।
पुरुष-तुममें उस्ताद कौन है?
माधो-हुजूर, मैं।
पुरुष-(चमड़ा दिखाकर) तुम यह चमड़ा देखते हो?
माधो-हां, हुजूर।
पुरुष-तुम जानते हो कि यह किस जात का चमड़ा है?
माधो-महाराज, यह चमड़ा बहुत अच्छा है।
पुरुष-अच्छा, मूर्ख कहीं का! तुमने शायद ऐसा चमड़ा कभी नहीं देखा होगा। यह जर्मन देश का चमड़ा है, इसका मोल बीस रुपये है।
माधो-(भय से) भला महाराज, ऐसा चमड़ा मैं कहां से देख सकता था?
पुरुष-अच्छा, तुम इसका बूट बना सकते हो।
माधो-हां, हुजूर, बना सकता हूं।
पुरुष-हां, हुजूर की बात नहीं, समझ लो कि चमड़ा कैसा है और बनवाने वाला कौन है। यदि साल भर के अन्दर कोई टांका उखड़ गया अथवा जूते का रूप बिगड़ गया तो तुझे बंदीखाने जाना पड़ेगा, नहीं तो दस रुपये मजूरी मिलेगी।
माधो ने मैकू की ओर कनखियों से देखकर धीरे से पूछा कि काम ले लूं? उसने कहा-हां, ले लो। माधो नाप लेने लगा।
पुरुष-देखो, नाप ठीक लेना, बूट छोटा न पड़ जाए। (मैकू की तरफ देखकर) यह कौन है?
माधो-मेरा कारीगर।
पुरुष-(मैकू से) होहो, देखो बूट एक वर्ष चलना चाहिए। पूरा एक वर्ष, कम नहीं।
मैकू का उस पुरुष की ओर ध्यान ही नहीं था। वह किसी और ही धुन में मस्त बैठा हंस रहा था।
पुरुष-(क्रोध से) मूर्ख! बात सुनता है कि हंसता है। देखो, बूट बहुत जल्दी तैयार करना, देर न होने पाए।
बाहर निकलते समय पुरुष का मस्तक द्वार से टकरा गया। माधो बोला सिर है कि लोहा, किवाड़ ही तोड़ डाला था।
मालती बोली-धनवान ही बलवान होते हैं। इस पुरुष को यमराज भी हाथ नहीं लगा सकता, और की तो बात ही क्या है?
उस आदमी के जाने के बाद माधो ने मैकू से कहा-भाई, काम तो ले लिया है, कोई झगड़ा न खड़ा हो जाए। चमड़ा बहुमूल्य है और यह आदमी बड़ा क्रोधी है, भूल न होनी चाहिए। तुम्हारा हाथ साफ हो गया है, बूट काट तुम दो, सी मैं दूंगा।
मैकू बूट काटने लगा। मालती नित्य अपने पति को बूट काटते देखा करती थी। मैकू की काट देखकर चकरायी कि वह यह कर क्या रहा है। शायद बड़े आदमियों के बूट इसी परकार काटे जाते हों, यह विचार कर चुप रह गई।
मैकू ने चमड़ा काटकर दोपहर तक स्लीपर तैयार कर लिये। माधो जब भोजन करके उठा तो देखता क्या है कि बूट की जगह स्पीलर बने रखे हैं। वह घबरा गया और मन में कहने लगा-इस मैकू को मेरे साथ रहते एक वर्ष हो गया, ऐसी भूल तो उसने कभी नहीं की। आज इसे क्या हो गया! उस पुरुष ने तो बूट बनाने को कहा था, इसने तो स्लीपर बना डाले। अब उसे क्या उत्तर दूंगा, ऐसा चमड़ा और कहां से मिल सकता है! (मैकू से)-मित्र, यह तुमने क्या किया? उसने तो बूट बनाने को कहा था न! अब मेरे सिर के बाल न बचेंगे।
यह बातें हो ही रही थी कि द्वार पर एक आदमी ने आकर पुकारा। मालती ने किवाड़ खोल दिए। यह उस धनी आदमी का वही नौकर था, जो उसके साथ यहां आया था। उसने आते ही कहा-रामराम, तुमने बूट बना तो नहीं डाले?
माधो-हां, बना रहा हूं।
नौकर-मेरे स्वामी का देहान्त हो गया, अब बूट बनाना व्यर्थ है।
माधो-अरे!
नौकर-वह तो घर तक भी पहुंचने नहीं पाये, गाड़ी में ही पराण त्याग दिए। स्वामिनी ने कहा है कि उस चमड़े के स्लीपर बना दो।
माधो-(परसन्न होकर) यह लो स्लीपर।
आदमी स्लीपर लेकर चलता बना।

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